UPSC Philosophy Optional Question Paper 2023: प्रश्न पत्र I

खण्ड- A

  1. निम्नलिखित में से प्रत्येक का लगभग 150 शब्दों में संक्षिप्त उत्तर दीजिये :

(a) “संप्रत्ययों के बिना इन्द्रिय-बोध दृष्टिहीन हैं तथा इन्द्रिय-बोध से रहित सम्प्रत्यय रिक्त हैं ।” उपरोक्त कथन के आलोक में विवेचना कीजिए कि किस प्रकार कान्ट बुद्धिवाद तथा अनुभववाद का समन्वय करते हैं ।
(b) “इतिहास द्वंद्वात्मक बदलाव की प्रक्रिया है ।” इस कथन के आलोक में इतिहास को समझने के लिए हेगल के दृष्टिकोण की विवेचना कीजिए ।
(c) “उस वस्तु को स्वतन्त्र कहा जा सकता है जो केवल अपने स्वरूपवश अनिवार्यतः अस्तित्ववान हो, और जो स्वयमेव कृत्यप्रति नियतिबद्ध हो ।” इस कथन के आलोक में स्पिनोजा के नियतत्ववाद तथा स्वातन्त्र्य संबंधी विचारों की विवेचना कीजिए ।
(d) व्यक्ति को आत्मा का मूलतत्त्व मानते हुए कीर्केगार्द किस प्रकार हेगल की सार्वभौम आत्मा की अवधारणा के विरुद्ध युक्ति प्रस्तुत करते हैं ? आलोचनात्मक विवेचना कीजिए ।
(e) यह सिद्ध करने के लिए कि संश्लेषणात्मक प्रागनुभविक निर्णय संभव हैं कांट क्या युक्तियाँ प्रस्तुत करते हैं ? सोदाहरण विवेचना कीजिए ।

2. (a) ‘कारणता संसर्ग के मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त पर आधारित आदत संबंधी विषय है’- ह्यूम के इस तर्क का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए ।
(b) अरस्तु के वास्तविकता तथा शक्यता के बीच प्रभेद की व्याख्या प्रस्तुत कीजिए । क्या यह प्राचीन ग्रीक दर्शन में प्रस्तुत सत् तथा संभवन की समस्या का समाधान प्रस्तुत करता है ? उचित उदाहरणों सहित व्याख्या कीजिए ।
(c) देकार्त का जन्मजात प्रत्यय सिद्धान्त तथा वे आधार जिन पर लॉक उनका खण्डन करते हैं, की व्याख्या कीजिए ।

3. (a) क्या तार्किक भाववादीयों द्वारा प्रस्तावित तत्त्वमीमांसा की अस्वीकृति अर्थ की समस्या अथवा ज्ञान की समस्या अथवा वस्तुओं के स्वरूप की समस्या या फिर इन सभी से जुड़ी हुई है ? उपयुक्त उदाहरणों सहित व्याख्या कीजिए ।
(b) हुसरल की सवृत्तिशास्त्रीय विधि में कोष्ठीकरण तथा अपचयन के महत्व को स्पष्ट कीजिए ।
(c) “चेतना वह है जो यह नहीं है और यह वह नहीं है जो कि यह है ।” इस कथन के आलोक में सार्त्र की चेतना की अवधारणा की प्रमुख विशेषताओं को उजागर कीजिए ।

4. (a) स्ट्रॉसन व्यक्ति को एक आद्य अवधारणा क्यों मानते हैं ? मनस- शरीर द्वैतवाद के लिए इसका क्या निहितार्थ है ? विवेचना कीजिए ।
(b) रसैल के अनुसार यह प्रतिज्ञप्ति – “फ्रान्स का वर्तमान राजा गंजा है” क्यों समस्याग्रस्त है ? आलोचनात्मक विवेचना कीजिए ।
(c) किन प्रमुख कारणों से विट्गेन्स्टाइन अपना रूख अर्थ के चित्र – सिद्धान्त से अर्थ के प्रयोग – सिद्धान्त की ओर कर लेते हैं ? आलोचनात्मक विवेचना कीजिए ।

खण्ड ‘B’

5. निम्नलिखित में से प्रत्येक का लगभग 150 शब्दों में संक्षिप्त उत्तर दीजिये :

(a) “सभी मानवीय ज्ञान आनुभविक है तथा इस कारण सापेक्ष है ।” उपरोक्त कथन के आलोक में जैनों के सप्तभंगीनय सिद्धान्त की आलोचनात्मक परीक्षा कीजिए ।
(b) “यदि पुरुष और प्रकृति दो पूर्ण रूप से स्वतन्त्र सत्ताएं हैं तो इन दोनों के बीच कोई भी संबंध सम्भव नहीं है ।” इस कथन के आलोक में शंकर की सांख्य द्वैतवाद की आलोचना का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए ।

5.(c) महावाक्य ‘तत् त्वम् असि’ की अद्वैतवादी व्याख्या क्या है ? संक्षिप्त विवरण दीजिए ।
(d) वैशेषिकों के कथन -” अभाव भाव का प्रतियोगी होता है तथा निरपेक्ष अभाव असम्भव है”- के प्रकाश में उनकी अभाव की अवधारणा का विवरण प्रस्तुत कीजिए ।
(e) ऑरबिन्दो के दर्शन के अनुसार विकासक्रम में अतिमनस (सुपरमाइन्ड) के स्वरूप तथा भूमिका की व्याख्या कीजिए ।

6. (a) शंकर की ब्रह्म और ईश्वर संबंधी अवधारणाओं की रामानुज द्वारा की गई आलोचना की विवेचना कीजिए ।
(b) अनुपलब्धि प्रमाण पर भट्ट मत प्रस्तुत कीजिए ।
(c) नैयायिकों के लौकिक एवं अलौकिक प्रत्यक्ष सम्बन्धी विचारों को स्पष्ट कीजिए । सामान्य अथवा जाति का प्रत्यक्ष होता है, इसे स्वीकार करने में क्या वे न्याय संगत हैं ? विवेचना कीजिए ।

7. (a) वैध हेतु के पाँच लक्षणों के संदर्भ में नैयायिकों की हेत्वाभास की अवधारणा स्पष्ट कीजिए ।
(b) अद्वैतवेदान्तियों के अनुसार मोक्ष पूर्व प्राप्त की पुनः प्राप्ति ( प्राप्तस्य प्राप्ति ) है । इस कथन को शंकर किस प्रकार उदाहरणों से स्पष्ट करते हैं ? अपनी टिप्पणियों सहित विवेचना कीजिए ।
(c) योग दर्शन के अनुसार चित्त एवं चित्तवृत्तियों की व्याख्या कीजिए । योग दर्शन चित्तवृत्तियों के निरोध का निर्देश क्यों देता है? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क प्रस्तुत कीजिए ।

8. (a) “प्रतीत्यसमुत्पाद को न जानना दुख है जबकि उसका ज्ञान दुख का अंत है ।” उपरोक्त कथन के आलोक में बौद्धों के मोक्षशास्त्र की व्याख्या प्रस्तुत कीजिए ।
8. (b) न्यायदर्शन में प्रागभाव के अवधारणा पर एक टिप्पणी लिखिए । यह अवधारणा किस प्रकार सांख्य के कारणता सिद्धान्त के प्रतिपक्ष में नैयायिकों की अपने कारणता सिद्धान्त की प्रतिरक्षा में सहायता करती है ? आलोचनात्मक विवेचना कीजिए ।
8. (c) क्या पद/शब्द सामान्य को अथवा विशेष को अथवा दोनों को इंगित करते हैं ? इस विषय पर न्याय तथा मीमांसा मतों की उदाहरणों सहित व्याख्या कीजिए ।


UPSC Philosophy Optional Question Paper 2023: प्रश्न पत्र II

खण्ड- A

1. निम्नलिखित में से प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए :

(a) निष्पक्षता के रूप में न्याय से क्या अभिप्राय है ? रॉल्स के न्याय के सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए ।
(b) अराजकतावादी के इस विचार का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए कि “सभी राज्य सदैव और सर्वत्र अवैध एवं अनुचित हैं ।”
(c) क्या आप इस बात से सहमत हैं कि भूमि और सम्पत्ति से संबद्ध अधिकारों ने महिलाओं को सशक्त किया है ? विवेचन कीजिए ।
(d) भारत के संदर्भ में बहुसंस्कृतिवादी समाज के समक्ष उपस्थित चुनौतियों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए ।
(e) यदि राजा राजनीति से ऊपर है, तो क्या राजतंत्र शासन का एक सुव्यवस्थित रूप हो सकता है ? विवेचन कीजिए ।

2. (a) लास्की ने संप्रभुता के निरपेक्ष स्वरूप को क्यों अस्वीकार किया ? व्याख्या कीजिए ।
(b) क्या आप सहमत हैं कि राज्य के बेहतर कामकाज के लिए कर्तव्य और जवाबदेयता को अधिकारों पर प्राथमिकता दी जानी चाहिए ? अपने उत्तर के लिए तर्क दीजिए ।
(c) वर्तमान परिदृश्य में, क्या कौशल आधारित शिक्षा विकास की गति में वृद्धि करेगी ? मूल्यांकन कीजिए ।

3. (a) ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए तथा सामाजिक विकास और परिवर्तन के संदर्भ में इसकी प्रासंगिकता का विवेचन कीजिए ।
(b) अम्बेडकर की जाति प्रथा के विनाश की अवधारणा के सामाजिक और राजनीतिक महत्त्व का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए ।
(c) लिंग भेद किस प्रकार कन्या भ्रूण हत्या और सामाजिक असंतुलन की ओर ले जाता है ? विवेचन कीजिए ।

4. (a) “दण्ड की कठोरता अपराध की गंभीरता के अनुपात में होनी चाहिए ।” क्या आप सहमत हैं कि एक किशोर व्यक्ति को दण्ड देते समय अपराध के स्वरूप पर विचार करना चाहिए ? अपने उत्तर के लिए तर्क दीजिए ।
(b) लोकतान्त्रिक राज्य के समक्ष चुनौतियों और इन्हें दूर करने के तरीकों की व्याख्या कीजिए ।
(c) धर्मनिरपेक्षता धर्म का अस्वीकरण नहीं बल्कि सभी धर्मों का स्वीकरण है । विवेचन कीजिए ।

खण्ड ‘B

5. निम्नलिखित में से प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए :

(a) ईश्वर के वैयक्तिक एवं निर्वैयक्तिक पहलुओं की स्पष्ट रूप से व्याख्या कीजिए ।
(b) क्या धार्मिक विश्वासों को तर्कसंगत सिद्ध किया जा सकता है ? विवेचन कीजिए ।
(c) क्या धर्म नैतिक व्यवहार को प्रभावित करता है ? धर्म व नैतिकता के बीच अन्योन्यक्रियात्मक सम्बन्ध की व्याख्या कीजिए ।
(d) धार्मिक भाषा के असंज्ञानात्मक स्वरूप के विषय में विट्गेन्सटाइन के विचारों का विवेचन कीजिए ।
(e) अज्ञेयवाद क्या है ? अज्ञेयवादी धर्म व ईश्वर के बीच सम्बन्ध की अवधारणा किस प्रकार करते हैं ? विवेचन कीजिए ।

6. (a) आत्मा के अमरत्व के सम्बन्ध में प्लेटो के अनुभवनिरपेक्ष प्रमाणों की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए ।
(b) ईश्वरवाद में ईश्वर किस अर्थ में अन्तर्यामी और अनुभवातीत दोनों हैं ? विवेचन कीजिए ।
(c) धर्म के विमर्श में आस्था के बौद्धिक और अबौद्धिक पक्षों की व्याख्या कीजिए ।

7. (a) ईश्वर के अस्तित्व के लिए न्याय दर्शन की युक्तियों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए ।
(b) कर्म के सिद्धान्त में पुनर्जन्म की अवधारणा के महत्त्व का परीक्षण कीजिए ।
(c) टिलिच के अनुसार धार्मिक भाषा के प्रतीकात्मक स्वरूप की व्याख्या कीजिए ।

8. (a) “सभी अशुभ या तो पाप है या पाप के लिए दिया गया दण्ड ।” – संत ऑगस्टाइन । समालोचनात्मक विवेचन कीजिए ।
(b) क्या धार्मिक बहुलवाद अन्तः धार्मिक संघर्षों को आमन्त्रित करता है और धर्म के सत्य का विनाश करता है ? विवेचन कीजिए ।
(c) रहस्यानुभूति और इलहाम के बीच सम्बन्ध का परीक्षण कीजिए और धार्मिक जीवन में उनके महत्त्व को समझाइए ।


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