UPSC Philosophy Optional Question Paper 2022: प्रश्न पत्र I

खण्ड- A

1. निम्नलिखित में से प्रत्येक का उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए:

(a) ज्ञानमीमांसा एवं तत्वमीमांसा के बीच सम्बन्ध की स्थापना हेतु प्लेटो किस प्रकार आकार सिद्धांत का उपयोग करते हैं? विवेचना कीजिए।
(b) बर्ट्रेण्ड रसेल की तार्किक विश्लेषण की विधि क्या है? अंततः किस प्रकार उसकी परिणति अर्थ के अणुवादी सिद्धांत में होती है? विवेचना कीजिए।
(c) उत्तरवर्ती विट्गेन्स्टाइन की जीवन-रूप भाषा की अवधारणा की समर्थनीयता की स्थापना कीजिए।
(d) मनोविज्ञानवाद क्या है? प्रागनुभविक संवृतिशास्त्र सम्बन्धी अपने विमर्श में हूसर्ल किस प्रकार मनोविज्ञानवाद की समस्या का परिवर्जन करते हैं? समालोचनात्मक विवेचना कीजिए।
(e) इमैन्युएल कान्ट के अनुसार अंतःप्रत्यक्ष क्या है? उनके द्वारा प्रस्तुत देश तथा काल के प्रागनुभविक प्रतिपादन के संदर्भ में विवेचना कीजिए।

2. (a) हाइडेगर के ‘जगत में होना’ सम्बन्धी विचार का समीक्षात्मक मूल्यांकन प्रस्तुत कीजिए तथा मानव अस्तित्व (दाजाइन) के परिप्रक्ष्य में ‘प्रामाणिकता’ की समस्या की विवेचना कीजिए।
(b) क्या अरस्तू का तादात्म्य के स्वरूप सम्बन्धी मत उनके इस मत से साम्यता रखता है कि कारण प्रक्रियानुगत है? उचित उदाहरण देते हुए व्याख्या कीजिए।
(c) स्पीनोजा के अनुसार द्रव्य की अवधारणा का विवेचन कीजिए। द्रव्य संबंधी उनकी विवेचना क्या सर्वेश्वरवाद की ओर ले जाती है? अपने मत की पुष्टि कीजिए।

3. (a) शुद्ध तर्कबुद्धि की भ्रमात्मक प्रवृत्तियों की व्याख्या के लिए कान्ट किस प्रकार विप्रतिषेधों की रचना करते हैं? कान्ट द्वारा प्रस्तुत विप्रतिषेधों की व्याख्या एवं परीक्षा कीजिए।
(b) जार्ज विल्हेल्म हेगन के दर्शन में द्वन्द्वात्मक विधि क्या है? निरपेक्ष के फलीभूतिकरण में यह विधि किस प्रकार सहायक है? विवेचना कीजिए।
(c) क्या विट्गेन्सटाइन के भाषा के चित्र-सिद्धांत में चित्ररूप एवं तार्किक रूप में भिन्नता है? तार्किक रूप कैसे भाषा तथा यथार्थता के बीच सम्बन्ध को निर्दिष्ट करता है? व्याख्या कीजिए।

4. (a) सोरेन किर्केगार्द ‘विषयिनिष्ठता’ की अवधारणा को किस प्रकार परिभाषित करते हैं? उनके द्वारा प्रतिपादित अस्तित्व की तीन अवस्थाओं के संदर्भ में इसकी व्याख्या कीजिए।
(b) आत्म ज्ञान के संदर्भ में रेने देकार्त निश्चितता की अवधारणा की किस प्रकार व्याख्या करते हैं? जगत के ज्ञान से यह किस प्रकार भिन्न है, इसकी समालोचनात्मक विवेचना कीजिए।
(c) जॉन लॉक जन्मजात प्रत्ययों का खण्डन क्यों और कैसे करते हैं? लॉक की ज्ञानमीमांसा में ज्ञान के स्वरूप एवं स्रोत का निरूपण कीजिए।

खण्ड ‘B’

5. निम्नलिखित में से प्रत्येक का उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए:

(a) पुरुष की सत्ता सिद्धि हेतु सांख्य दर्शन में प्रदत्त प्रमाणों का परीक्षण एवं मूल्यांकन कीजिए।
(b) वैशेषिक दर्शन के अनुसार ‘सामान्य’ की सत्तामीमांसात्मक स्थिति क्या है? समीक्षात्मक परीक्षण कीजिए।
(c) पातंजल योग के अनुसार समाधि के स्वरूप एवं विविध स्तरों का विवेचन कीजिए तथा इसमें ईश्वर की भूमिका का परीक्षण कीजिए।
(d) जैनों की क्रम की अवधारणा उनके मोक्षशास्त्र को किस प्रकार प्रभावित करती हैं? समालोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
(e) क्या आप इस विचार से सहमत हैं कि ‘विवर्तवाद परिणामवाद का तार्किक विकास है’ अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए।

6. (a) बौद्धों का क्षणिकवाद सिद्धांत इनके कर्म सिद्धांत से कितना सुसंगत है? इस सम्बन्ध में बौद्ध उनके प्रतिपक्षियों द्वारा उत्थापित आक्षेपों का उत्तर किस प्रकार देते हैं? समालोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
(b) ‘निरपेक्ष को अभिगृहीत किए बिना जैन दर्शन का सापेक्षतावादी सिद्धांत तार्किक रूप से धारणीय नहीं हो सकता।’ इस मत का समीक्षात्मक परीक्षण कीजिए तथा अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिए।
(c) मीमांसक न्याय के इस मत का कि अर्थापत्ति का अंतर्भाव अनुमान में हो जाता है, किस प्रकार खंडन कर अर्थापत्ति की एक स्वतंत्र वैध ज्ञान स्रोत (प्रमाण) के रूप में स्थापना करते हैं? समालोचनात्मक व्याख्या कीजिए।

7. (a) ज्ञान की स्वतःप्रमाण्यता की स्वीकृति के बावजूद प्रभाकर एवं कुमारिल भ्रमात्मक ज्ञान की व्याख्या में क्यों और कैसे भिन्न हैं? विवेचन कीजिए।
(b) बौद्ध दर्शन की त्रिरत्न की अवधारणा तथा इनके अन्तःसम्बन्धो की व्याख्या कीजिए। बौद्ध दर्शन के नैरा त्म्यवाद के साथ त्रिरत्न की सुसंगतता का समीक्षात्मक परीक्षण कीजिए।
(c) चारवाक के अनुमान के विरोध में दिए गए आक्षेपों का नैयायिक किस प्रकार प्रत्युत्तर देते हैं तथा अनुमान को एक स्वतंत्र ज्ञान-स्रोत के रूप में स्थापित करते हैं? समालोचनात्मक विवेचना कीजिए।

8. (a) ‘ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या, जीवों ब्रह्मैव नापरः’ इस कथन के आलोक में अद्वैत वेदान्त में निरूपित ईश्वर, जीव एवं साक्षी की सत्तात्मक स्थिति की व्याख्या कीजिए।
(b) श्री अरविन्द द्वारा प्रतिपादित वैयक्तिक विकास हेतु त्रिविध रूपांतरण की प्रक्रिया में समग्र योग की भूमिका की व्याख्या एवं मूल्यांकन कीजिए।
(c) मध्वाचार्य की मोक्ष की अवधारणा रामानुजाचार्य की अवधारणा से कैसे भिन्न है? व्याख्या कीजिए।


UPSC Philosophy Optional Question Paper 2022: प्रश्न पत्र II

खण्ड- A

1. निम्नलिखित में से प्रत्येक का उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए:

(a) मानववाद के उदय में प्रबोधन (एनलाइटनमेंट) आंदोलन की भूमिका की विवेचना कीजिए।
(b) व्यक्तिवाद तथा सार्वभौमिक मताधिकार के युग में राज-निकाय (बॉडी-पॉलिटिक) में जाति की क्या भूमिका है? विवेचना कीजिए।
(c) क्या भ्रष्टाचार एक तंत्रगत विषय है अथवा एक नीतिशास्त्रीय विषय? अपनी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ प्रस्तुत कीजिए।
(d) “सम्पूर्ण स्वतंत्रता असमानता को जन्म दे सकती है, जबकि व्यवस्था तथा प्रतिबंध से अनिवार्यतः स्वतंत्रता के ह्रास का फलन होता है।” समालोचनात्मक विवेचना कीजिए ।
(e) मृत्युदण्ड के पक्ष में कौन-सि नैतिक युक्तियाँ संभव हैं? विवेचना कीजिए।

2. (a) यह सिद्ध करने के लिए कि परमतात्विक, निरंतर तथा अविभाजित होनी चाहिए, बोडिन कौन-सी युक्तियाँ प्रस्तुत करते है? कट बोडिन की संप्रभुता की अवधारणा समानता, न्याय तथा स्वतंत्रता के सामाजिक तथा राजनैतिक आदर्शों के साथ सुसंगत है? समालोचनात्मक विवेचना कीजिए।
(b) जातिगत भेदभाव के निर्मूलन पर गांधी के विचारों का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
(c) मार्क्स के दर्शन के संदर्भ में साम्यता (इक्विटी) तथा समानता की अवधारणाओं के बीच अंतर की व्याख्या कीजिए।

3. (a) क्या आप सहमत हैं कि आर्थिक स्वयमेव मानव विकास तथा सामाजिक प्रगति में परिणित नहीं होता ? अपने उत्तर के लिए तर्क तथा प्रमाण प्रस्तुत कीजिए।
(b) एक सांस्कृतिक कोटि के रूप में लिंग-जाति (जेंडर) तथा एक जीववैज्ञानिक कोटि के रूप में लिंग-भेद (सेक्स) के बीच विरोधाभास की विवेचना कीजिए।
(c) बहुसंस्कृतिवाद के विवरणात्मक तथा नियामक पक्षों का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिए।

4. (a) शासन के लोकतान्त्रिक स्वरूप के सम्मुख चुनौती के रूप में अतिप्रचार (प्रोपेगैंडा) की व्याख्या कीजिए।
(b) क्या अप्रतिबंधित अधिकारों की अवधारणा अनिवार्यतः अव्यवस्था में परिणित होती है? समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
(c) क्या एकाधिपत्य (मोनार्कि) तथा धर्मतंत्र (थियोक्रेसी) अनिवार्यतः सम्बन्धित हैं? दैविक अधिकार सिद्धांत के संदर्भ में व्याख्या कीजिए।

खण्ड ‘B’

5. निम्नलिखित में से प्रत्येक का उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए:

(a) स्पिनोजा की ईश्वर तथा उसकी विशेषताओं की अवधारणा पर एक निबंध लिखिए।
(b) “धर्म के बिना नैतिकता सम्भव है किन्तु नैतिकता के बिना धर्म सम्भव नहीं है।” विवेचना कीजिए।
(c) “आत्मा की अमरता पुनर्जन्म के लिए एक अनिवार्य आधारतत्व है।” बौद्धधर्म के संदर्भ में समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
(d) क्या आस्था की अवधारणा इलहाम (रेविलेशन) की अवधारणा के लिए अपरिहार्य है? समालोचनात्मक टिप्पणी कीजिए।
(e) “ईश्वर सत्तावान है” – इस वाक्य के संदर्भ में धार्मिक भाषा सम्बन्धित संज्ञानात्मक (कॉग्रिटिविस्ट) तथा असंज्ञानात्मक (नॉन- कॉग्रिटिविस्ट) दृष्टिकोणों में भेद की व्याख्या कीजिए।

6. (a) ईश्वर की सत्ता प्रमाणित करने के लिए सेंट थॉमस एक्वाइनस द्वारा प्रदत्त विभिन्न युक्तियों, जिन्हें ‘पंच मार्ग (फाइव सेव)’ भी कहा जाता है, की समालोचनात्मक व्याख्या प्रस्तुत कीजिए। इनमें से कौन आपको दर्शनीक रूप से सबसे रोचक लगती है? अपने उत्तर के समर्थन में युक्तियाँ कीजिए।
(b) रामानुजाचार्य के अनुसार ईश्वर तथा आत्मा के बीच सम्बन्ध की व्याख्या कीजिए।
(c) यदि ईश्वर परम सृजनकर्ता है, तो अनिष्ट (इविल) का उत्तरदायित्व मानवकर्ता से सम्बन्ध नहीं हो सकता। समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए।

7. (a) “केवल एक परम सत्य की अविवाद्य स्वीकार्यता अपरिहार्य रूप से धार्मिक व्यावर्तकतावाद में फलित होगी।” व्याख्या कीजिए।
(b) क्या एक यथार्थ कर्ता की अवधारणा के बिना मोक्ष की अवधारणा सम्भव है? इस संदर्भ में अद्वैत तथा विशिष्टाद्वैत दर्शन के बीच अंतर की विवेचना कीजिए।
(c) विलियम जेम्स द्वारा प्रस्तुत धार्मिक अनुभवों के स्वरूप तथा प्रकारों की विवेचना कीजिए।

8. (a) ईश्वर की सत्ता के लिए प्रागनुभविक तथा अनुभवसापेक्ष युक्तियों के बीच अंतर के मुख्य बिंदुओं की विवेचना कीजिए। आप इनमें से किसको अन्य पर अधिक वरीयता देंगे? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क तथा प्रमाण प्रस्तुत कीजिए।
(b) जैन दर्शन के अनुसार आत्मा तथा बंधन के स्वरूप की विवेचना कीजिए।
(c) शंकर के अद्वैत दर्शन में ब्रह्म की अवधारणा का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए। क्या शंकर की ब्रह्म की अवधारणा में ईश्वरवाद के लिए कोई स्थान शेष है? विवेचना कीजिए।


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