UPSC Philosophy Optional Question Paper 2014: प्रश्न पत्र I

खण्ड- A

1. निम्नलिखित में से प्रत्येक का लगभग 150 शब्दों में संक्षिप्त उत्तर दीजिए:

(a) कान्ट के अनुसार अनुभव-निरपेक्ष संश्लेषणात्मक निर्णय कैसे समर्थनीय हैं? स्पष्ट कीजिए।
(b) विट्गेन्सटाइन के अर्थ के प्रयोग सिद्धांत में ‘भाषायी खेलों’ की महत्ता स्पष्ट कीजिए।
(c) हूसर्ल के संवृतिशास्त्र (फिनॉमिनौलोजी) में ‘कोष्ठकीकरण’ की महत्ता स्पष्ट कीजिए।
(d) क्या लाइबनित्ज का पूर्व-स्थापित सामंजस्य का सिद्धांत अनिवार्यतः नियतत्ववाद (डिटर्मिनिज़्म) की ओर ले जाता है? चर्चा कीजिए।
(e) क्वाइन के “टू डॉग्मास ऑफ इम्पीरिसिज़्म” में दी गई युक्तियाँ किस सीमा तक समर्थनीय हैं? चर्चा कीजिए।

2. (a) प्लेटो के अनुसार, ज्ञान और विश्वास में भेद कीजिए। यह उनकी तत्वमीमांसा पर किस प्रकार आधारित है? स्पष्ट कीजिए।
(b) देकार्तीय द्वैतवाद (कार्टीसीयन डुअलिज़्म) के सिद्धांत को स्पष्ट करते हुए उसकी समर्थक युक्तियों की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए।
(c) ह्यूम के द्वारा कार्यकारण सिद्धांत की आलोचना का समीक्षात्मक मूल्यांकन कीजिए।

3. (a) क्या इंद्रियानुभविक कथन निर्णायक रूप से सत्यापनीय हैं? ‘अर्थ के सत्यापन सिद्धांत’ परिसीमाओं की चर्चा कीजिए।
(b) ट्रेकटेटस के दर्शन में परमाणुवाद (ऐटोमिज़्म) की बट्रार्ड रसेल द्वारा की गई व्याख्या से विट्टगेन्सटाइन क्यों असहमत है? चर्चा कीजिए।
(c) क्या सामान्य बुद्धि की सफाई में जी. ई. मूर द्वारा दी गई युक्तियाँ संतोषप्रद हैं? कारण दीजिए।

4. (a) किर्केगार्ड की वरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए। वरण की अधिनीतिशास्त्र में अवधारणा आदर्शन नीतिशास्त्र से किस तरह भिन्न है? स्पष्ट कीजिए।
(b) किसी वस्तु के अस्तित्व को जानना कालिकता (टैंपोरैलिटी) के क्षतिज के सामने होता है, हैडेगर के इस दावे को प्रस्तुत हुए उसका मूल्यांकन कीजिए।
(c) अरस्तू के कार्यकारण सिद्धांत में प्रयुक्त, आकार एवं द्रव्य के सिद्धांत के महत्व को समझाइए।

खण्ड ‘B’

5. निम्नलिखित के लघु उत्तर लिखिए, जो प्रत्येक लगभग 150 शब्दों में हो:

(a) “ज्ञान और जगत की सीमाओं को मेरा इंद्रिय-प्रत्यक्ष निर्धारित करता है।” चार्वाक के इस दावे की चर्चा कीजिए।
(b) बौद्ध दर्शन के सौत्रांतिक एवं वैभाषिक संप्रदायों के मध्य ज्ञानमीमांसीय (ऐपिस्टेमौलोजिकल) भेदों को स्पष्ट कीजिए।
(c) अपनी तत्वमीमांसा के विकास में शंकर के दर्शन द्वारा ‘अध्यास’ की अवधारणा की महत्ता को स्पष्ट कीजिए।
(d) क्या सांख्य दर्शन में प्रकृति के अस्तित्व के पक्ष में दी गई युक्तियाँ पर्याप्त हैं? चर्चा कीजिए।
(e) क्या अर्थापत्ति प्रमाण को अनुमान प्रमाण में समाहित किया जा सकता है? मीमांसा दर्शन के दृष्टिकोण से विवेचना कीजिए।

6. (a) चिरसम्मत भारतीय परंपरा में यथार्थता के सिद्धांतों में, कार्यकारण का सिद्धांत किस तरह केन्द्रीय भूमिका निर्वाह करता है? विवेचन कीजिए।
(b) कर्म की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए एवं जैन दर्शन के अनुसार उसके विभिन्न प्रकारों की विवेचना कीजिए।
(c) किसी वस्तु के अभाव को न्याय दर्शन एवं मीमांसा दर्शन में किस प्रकार जाना जाता है? विवेचन कीजिए।

7. (a) न्याय दर्शन में अलौकिक प्रत्यक्ष को स्वीकार करने के दार्शनिक निहितार्थों को उद्घाटित कीजिए।
(b) संप्रज्ञात समाधि की ओर अग्रसर करता है?
(c) “पुरुष न बंधन में होता है, न मुक्त होता है और न वह संसरण (पुनर्जन्म) करता है” – सांख्य दर्शन के मोक्ष संबंधी इस मत का परीक्षण कीजिए।

8. (a) शंकर, रामानुज एवं मध्व के दर्शन में ब्रह्म की प्रकृति किस प्रकार से भिन्न है? आलोचनात्मक विवेचन कीजिए।
(b) शून्यता की अवधारणा को नागार्जुन किस प्रकार समझाते हैं?
(c) श्री अरविन्द का पुर्न योग किस प्रकार पातंजल योग का विकसित रूप है? विवेचन कीजिए।


UPSC Philosophy Optional Question Paper 2014: प्रश्न पत्र II

खण्ड- A

1. निम्नलिखित में से प्रत्येक का लगभग 150 शब्दों में संक्षिप्त उत्तर दीजिए:

(a) यदि जाति भेदभाव में निरन्तरता और सोपान है, तो न्याय का कौन-सा सिद्धांत इस समस्या को समाप्त कर सकता है?
(b) बहुसंस्कृतिवाद किस प्रकार पहचान, स्वतंत्रता और समता जैसी उदारवादी धारणाओं को पुनर्भाषित करता है तथा उसके अभिगृहितों की पुनर्रचना करता है?
(c) उदारवादी मानववाद और मार्क्सवादी मानववाद में हम किस प्रकार विभेदन करते है?
(d) जॉन ऑस्टिन के संप्रभुता के सिद्धांत के महत्व को स्पष्ट कीजिए। यह हॉब्स के सिद्धांत से किस प्रकार भिन्न अहि?
(e) क्या हम कह सकते है कि प्रजातीय सर्वोच्चता (रेशीयल सुप्रिमेसी) जनसंहार का मुख्य कारण है? अपने उत्तर के कारण बताइए।

2. (a) दंड के किस सिद्धांत, प्रतिशोधात्मक या सुधारवादी, का आप समर्थन करते हैं और क्यों?
(b) “कोई भी नारी पैदा नहीं होती है, परंतु वह नारी बन जाती है।” इस कथन की समालोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
(c) क्या हम परकीयन (एलिनेशन)के विलोपन के द्वारा सामाजिक प्रगति प्राप्त कर सकते हैं? समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिए।

3. (a) “शक्ति भ्रष्ट बनाती है, पूर्ण शक्ति पूर्णरूपेण भ्रष्ट बनाती है” – इस कथन का तर्क पेश करते हुए विश्लेषण कीजिए।
(b) भारत में जाति-व्यवस्था पर गांधी एवं अंबेडकर के बीच बुनियादी भेद क्या हैं?
(c) ‘न्याय’ की मीमांसा के रूप में, अमर्त्य सेन के ‘नीति’ के सिद्धांत की विवेचना कीजिए ।

4. (a) “सभी मानव अधिकार व्यक्तिक अधिकारों पर केंद्रित हैं।”चर्चा कीजिए।
(b) बहुसंस्कृतिवाद पर वर्णनात्मक और आदर्शक संदर्शो की व्याख्या कीजिए।
(c) धर्मतंत्र की तुलना में, लोकतंत्र किस मायने में सरकार का एक बेहतर रूप है?

खण्ड ‘B’

5. निम्नलिखित में से प्रत्येक का लगभग 150 शब्दों में संक्षिप्त उत्तर दीजिए:

(a) यदि ईश्वर को ‘एक’ माना जाए, तो क्या इससे धार्मिक द्वन्द्व उत्पन्न होंगे?
(b) किन आधारों पर ‘है’ और ‘चाहिए’ का विरोधाभास स्वीकार या अस्वीकार किया जा सकता है?
(c) आत्मा की अमरता के पक्ष में कौन-से तर्क दिए जाते हैं?
(d) क्या बहुतत्ववादी (प्लूरलिस्ट) दृष्टिकोण निरपेक्ष सत्य की प्रतिरक्षा कर सकता है?
(e) ‘पुनर्जन्म’ को आत्मा के साथ या उसके बिना आप किस प्रकार सिद्ध कर सकते हैं ?

6. (a) धार्मिक नैतिकता किस सीमा तक व्यक्तिगत स्वतंत्रता को समाहित कर सकती है?
(b) धार्मिक भाषा का आप निस्संज्ञानात्मक (नॉन-कॉग्निटिव) रूप में किस प्रकार निरूपण करते हैं?
(c) क्या ईश्वर के ‘प्रत्यय’ को तो स्वीकार करना परंतु ईश्वर के ‘अस्तित्व’ को नकारना आत्म-व्याघाती हो सकता है?

7. (a) क्या हितकारी ईश्वर के साथ अशुभ (इविल) समाधेय है?
(b) ईश्वर के अस्तित्व के लिए विश्व-कारण-युक्ति (कॉस्मॉलोजिकल आर्गुमेन्ट) की विवेचना कीजिए तथा उसके गुण व दोष बताइए।
(c) ‘अद्वैत’ तथा ‘विशिष्टद्वैत’ के अनुसार मोक्ष (लिबरेशन) की संकल्पना के बीच साम्य और वैषम्य दर्शाइए।

8. (a) ‘अनर्वर्तिता’ (इमनेंस) और ‘अनुभवतीतता’ (ट्रांसेंन्डेस) के मध्य जगत में मनुष्य की प्रस्थिति को सविस्तार स्पष्ट कीजिए।
(b) क्या आस्था को उचित सिद्ध करने के लिए तर्क का उपयोग किया जा सकता है?
(c) बौद्ध एवं जैन दर्शन के विशेष उल्लेख के साथ, धार्मिक अनुभवों की परस्पर विरोधी प्रकृति पर चर्चा कीजिए।


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