UPSC Philosophy Optional Question Paper 2016: प्रश्न पत्र I

खण्ड- A

1. निम्नलिखित में से प्रत्येक का लगभग 150 शब्दों में संक्षिप्त उत्तर दीजिए:

(a) लॉक के संदर्भ में द्वितीयक गुणों की अवधारणा को लागू करने की तार्किक आवश्यता क्या है? कारणों सहित उत्तर दें।
(b) डेकार्ट द्वारा प्रस्तावित आत्म-सिद्धांत के मत पर कान्ट की आलोचना की अमीक्षा करें।
(c) निजी भाषा की संभावना को विटगेन्सटाइन क्यों अस्वीकार करते हैं?
(d) सत्यापन सिद्धांत की व्याख्या करें। क्या यह तत्वमीमांसा के निष्कासन की ओर अग्रसर करता है?
(e) क्वाइन द्वारा प्रस्तावित विश्लेषणात्मक-संश्लेषणात्मक भेद पर आलोचनात्मक समीक्षा प्रस्तुत करें।

2. (a) क्या अरस्तू भौतिक द्रव्य को ‘तत्व’ के रूप में स्वीकार करते हैं? अपने उत्तर के पक्ष णे तर्क प्रस्तुत करें।
(b) कारण तहत प्रभाव के सम्बन्ध पर ह्यूम के विचारों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।
(c) सार्त्र की ‘अवस्तुता’ का बोधात्मक विवेचन करें।

3. (a) क्या प्लेटो का ‘आकार सिद्धांत’ भौतिक द्रव्य में ‘परिवर्तन’ और ‘संवेद्यार्थता’ की व्याख्या कर पाता है? अपने उत्तर के लिए तर्क प्रस्तुत करें।
(b) कान्ट के अनुसार ‘विशुद्ध प्रज्ञप्तियाँ’ क्या हैं? ज्ञान की प्रक्रिया में विशुद्ध प्रज्ञप्तियों की भूमिका का परीक्षण करें।
(c) रसल के इस दृष्टिकोण की व्याख्या करें कि “भौतिक वस्तु इंद्रिय-दत्त की तार्किक संरचना है”। वह अपने तत्वमीमांसीय दृष्टिकोण को ‘तटस्थ एकत्ववाद’ क्यों कहते हैं?

4. (a) हूसर्ल के अनिसर दार्शनिक का क्या कार्य है? क्या आप यह मानते हैं कि उनकी विधियाँ दर्शन के लिए प्रासंगिक हैं? वर्णन करें।
(b) ईश्वर के विषय में हेगेल का क्या विचार है? क्या उनकी ईश्वरवादी व्याख्या औपनिवेशिक तथा साम्राजयिक विस्तारवाद डिजाइन की प्रक्रिया में सहायक मानी जा सकती है? स्पष्ट करें।
(c) ईश्वर को लेकर तर्कबुद्धिवादियों और अनुभववादियों के विभिन्न मतों की व्याख्या करें।

खण्ड ‘B’

5. निम्नलिखित में से प्रत्येक का लगभग 150 शब्दों में उत्तर दें:

(a) जैन और योग दर्शन में परिचर्चित ‘कैवल्य’ की अवधारणा के मध्य भेद स्थापित करें।
(b) ‘क्षणिकवाद’ किस प्रकार ‘नैरात्म्यवाद’ के लिए प्रस्तुत युक्तियों को प्रबल बनाता है? स्पष्ट करें।
(c) सृष्टि के विकास की प्रक्रिया में ‘प्रकृति’ की भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।
(d) जैन दर्शन के अनुसार ‘नय’ अवधारणा का परीक्षण करें। यह किस प्रकार ‘स्याद्वाद’ से भिन्न है?
(e) ईश्वर के संदर्भ में शंकर की स्थिति का मूल्यांकन करें।

6. (a) क्या ‘प्रतीत्यसमुत्पाद का सिद्धांत’ कार्य-कारणता के नियम के डॉ अतिवादी विचार, सत्कार्यवाद और असत्कार्यवाद, में समन्वय कर पाता है? अपने उत्तर के लिए तर्क प्रस्तुत करें।
(b) क्या जैन दर्शन के ‘तत्वार्थ’ सिद्धांत को वैज्ञानिक स्पष्टीकरण की दृष्टि से स्वीकार कीया जा सकता है? स्पष्ट करें।
(c) क्या ‘आत्मवाद’ का सिद्धनत आधुनिक व तर्क के युग के परिप्रक्ष्य में स्वीकार्य है? भारतीय दर्शन के संदर्भ में इसकी समीक्षा करें।

7. (a) ‘विकास’ और ‘अंतर्लयन’ सम्बन्धी अरविन्द के विचारों की विवेचना करें। ये किस प्रकार पारस्परिक योग दर्शन से भिन्न हैं?
(b) व्याप्ति पर चावार्क का दिष्टिकोण क्या है? क्या यह दिष्टिकोण नैयायिकों को स्वीकार्य है? कारणों सहित अपना उत्तर प्रस्तुत करें।
(c) मीमांसकों द्वारा ‘अर्थापत्ति’ को स्वतंत्र प्रमाण के रूप में समझने की क्या तार्किक आवश्यकता है? विवेचना करें।

8. (a) ‘अभाव’ को एक स्वतंत्र [दर्थ के रूप में स्वीकार करने से संबंधित तर्क पर नैयायिकों ने अपनी सहमति जैसे दी?
(b) क्लेश क्या हैं? उनका उन्मूलन कैसे कीया जा सकता है? व्याख्या करें।
(c) शंकर, रामानुज और माधव के द्वारा विवेचनीय ‘ब्रह्मन’ की अवधारणा का आलोचनात्मक विवरण प्रस्तुत करें।


UPSC Philosophy Optional Question Paper 2016: प्रश्न पत्र II

खण्ड- A

1. निम्नलिखित में से प्रत्येक का लगभग 150 शब्दों में संक्षिप्त उत्तर दीजिए:

(a) “संप्रभुता नागरिकों तथा प्रजा पर सर्वोच्च शक्ति है, जो विधि द्वारा परिबधित नहीं है।” विवेचना कीजिए।
(b) राउल्स के अनुसार सुव्यवस्थित समाज न्याय की जन अवधारणा द्वारा प्रभावी रूप से नियमित होता है। क्या आप इससे सहमत हैं? कारण स्पष्ट कीजिए।
(c) “समाजवाद स्वयं में लोकतंत्र की पूर्णता है।” विश्लेषण कीजिए।
(d) इस कथन का मूल्यांकन कीजिए कि प्रत्येक मानव को कुछ अविच्छेद्य (अदेय) अधिकार प्राप्त हैं।
(e) “दंडित करने का उद्देश्य व्यक्ति में सुधार लाना होना चाहिए।” टिप्पणी प्रस्तुत कीजिए।

2. (a) क्या स्वतंत्रता आत्मज्ञान प्राप्ति के लिए सकारात्मक एवं समान अवसर है? विवेचना कीजिए।
(b) किन आधारों पर लैक्सी ने संप्रभुता से संबद्ध ऑस्टिन की अवधारणा की आलोचना की?
(c) “स्वतंत्र भाषण के अधिकार में न्यायपालिका की प्रामाणिक स्वतंत्रता अंतर्निहित है और यह uसे कार्यपालिका से पूर्णतः अलग करता है।” मूल्यांकन कीजिए।

3. (a) क्या हम राज्य को शासक वर्गों की इच्छाओं को व्यक्त करने की संस्था मानते हैं> परीक्षण कीजिए।
(b) “प्रभुत्व से मुक्ति” को क्या हम बहुसांस्कृतिवाद के लिए एक वजह (औचित्य) मान सकते हैं? कारणों सहित अपना उत्तर प्रस्तुत कीजिए।
(c) क्या यह सम्भव है कि सामाजिक प्रगति का मापन आर्थिक विकास के इतर (स्वतंत्र) कर लिया जाए? विवेचना कीजिए।

4. (a) “जहाँ तक मेरा सम्बन्ध है में नारीत्व को कमजोर लिंग नहीं मानता। यह दोनों में से अधिक महान है।” गांधी के इस कथन का मूल्यांकन कीजिए।
(b) क्या आप सहमत हैं कि सामूहिक मीमांसा तथा निर्णयन के द्वारा महिलायें सशक्त हो सकती हैं? विवेचना कीजिए।
(c) ऐतिहासिक तथा सामाजिक परिप्रेक्ष्यों के आधार पर अंबेडकर ने जाति व्यवस्था का किस प्रकार विश्लेषण किया ? व्याख्या कीजिए।

खण्ड ‘B’

5. निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का लगभग 150 शब्दों में उत्तर दीजिए:

(a) ‘आधुनिक संवेदनशीलता तथा निरंकुश ईश्वर के प्रति पुर्न समर्पण’ एक-साथ नहीं चल सकते हैं। इस विचार पर अपनी समालोचना प्रस्तुत कीजिए।
(b) “विश्व-धर्म एक प्रकार से आध्यात्म एवं मानवता का सम्मिश्रण है।” मूल्यांकन कीजिए।
(c) क्या धार्मिक निरपेक्षवाद धार्मिक बहुतत्ववाद के लिए खतरा है? विवेचना कीजिए।
(d) बौद्ध धर्म आत्मा के अमरत्व पर विश्वास नहीं करता, परंतु पुनर्जन्म की घटना पर विश्वास करता है। परीक्षण कीजिए।
(e) आस्था का अर्थ ईश्वर के प्रति मानव की जागरूकता है; परंतु यह विवेकहीन नहीं हो सकता। विश्लेषण कीजिए।

6. (a) श्रुति मूर्त रूप में वक्तव्यों या प्रतिज्ञप्तियों में व्यक्त की गई सत्यों से बनी होती है। परंतु यह तर्क से परे नहीं हो सकती है। विवेचना कीजिए।
(b) प्राच्य (पूर्वी) धर्मों में मानव और संसार की तुलना तथा विषमता प्रस्तुत कीजिए।
(c ) दर्शाइए कि ईश्वर के अंतर्यामित्व (अन्तर्वर्तिता) तथा इंद्रियातीत गुण किस तरह उनके सर्वव्यापकता तथा अनंतता को प्रदर्शित करते हैं।

7. (a) राहस्यवादी अनुभव की प्रकृति तथा वैधता का उल्लेख एवं मूल्यांकन कीजिए।
(b) “नैतिकता के सिद्धांत तब अधिक कारगर होंगे जब वे किसी धर्म से स्वाधीन तथा असंबद्ध हों।” विवेचना कीजिए।
(c) “यह कहना ही स्वत: विरोधाभासी होगा कि कल्पना की जा सकने वाली सर्वाधिक सिद्ध सत्ता में अस्तित्व में होने के लक्षणों का अभाव होता है।” विश्लेषण कीजिए।

8. (a) “यदि ईश्वर सर्वशक्तिमान है, तब तो सभी प्रकार की बुराइयों को समाप्त करने की ईश्वर की इच्छा अवश्य रही होगी; परंतु संसार में नैतिक तथा प्राकृतिक बुराइयाँ उग्र रूप से प्रचलित हैं।” एक ईश्वरवादी/आस्तिक की इस पर क्या प्रतिक्रिया होगी?
(b) धार्मिक भाषा से संबंधित विभिन्न विचारों के मध्य कौन-स विचार अधिक संतोषजनक है तथा क्यों?
(c) “प्रकृति की दुनिया उतनी ही जटिल तथा स्पष्टतः रूपांकित है जितनी कि एक घड़ी।” मूल्यांकन कीजिए।


Similar Posts

Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments