UPSC Hindi Literature Optional Paper-1 2013: हिंदी साहित्य प्रथम प्रश्न पत्र
खण्ड ‘A’
- निम्नलिखित पर टिप्पणियाँ लिखिए:
(क) देवनागरी लिपि के विकास की संक्षिप्त रूपरेखा
(ख) मध्यकाल में काव्य-भाषा के रूप में अवधी का विकास
(ग) खुसरो की कविता की विशेषताएँ
(घ) हिन्दी की रूपात्मक त्रुटियाँ
(ड) दक्खिनी हिन्दी की विशेषताएँ - (क) रहीम की कविता के मर्म का उदघाटन कीजिये एवं उसकी लोकप्रियता के कारणों का निर्देश कीजिये।
(ख) खुसरो की कविता के आधार पर उनकी लोक-चेतना पर संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
(ग) पूर्वी हिन्दी की किन्हीं दो बोलियों का विवेचन कीजिए। - (क) मानक हिन्दी के स्वरूप पर प्रकाश डालिये।
(ख) मानक हिन्दी की व्याकरणिक विशेषताओं का परिचय दीजिए।
(ग) हिन्दी की तकनीकी शब्दावली के उपयोग में आनेवाली कठिनाइयों पर प्रकाश डालिए। - (क) राष्ट्रभाषा हिन्दी के आन्दोलन में सेठ गोविन्ददास के योगदान पर विचार कीजिये।
(ख) हिन्दी में वैज्ञानिक लेखन की वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डालिए।
(ग) हिन्दी दिवस (14 सितम्बर) की उपयोगिता पर अपना मत व्यक्त कीजिए।
खण्ड ‘B’
5. निम्नलिखित पर टिप्पणियाँ लिखिए:
(क) विद्यापति की कविता की प्रमुख विशेषताएँ
(ख) प्रेम की पीर के कवि घनानंद
(ग) भीष्म साहनी के उपन्यास ‘तमस’ का महत्व
(घ) भारतेन्दु के ‘अँधेर नगरी’ नाटक की समकालीनता
(ड) छायावाद में नवजागरण के स्वर
6. (क) जायसी की कविता और उसमें ध्वनित लोकचित्र
(ख) ‘अयोध्याकांड’ के आधार पर तुलसी के भाव-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए|
(ग) मोहन राकेश के नाटय-शिल्प पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए|
7. (क) ‘जैनेन्द्र के नारी चरित्र’ विषय पर एक निबंध लिखें|
(ख) कृष्णा सोबती की कहानियों के आधार पर उनकी कथा-भाषा पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए|
(ग) अकहानी आन्दोलन के स्वरूप को स्पष्ट कीजिए|
8. (क) डॉ. रामविलास शर्मा के आलोचनात्मक विवेक पर एक निबंध लिखिये|
(ख) कांतिकुमार जैन के संस्मरणों के वैशिष्टय का निरूपण कीजिए|
UPSC Hindi Literature Optional Paper-2 2013: हिंदी साहित्य द्वितीय प्रश्न पत्र
खण्ड ‘A’
1. निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों की ससन्दर्भ व्याख्या करते हुए उनके काव्य-सौंदर्य का उद्घाटन कीजिए :
(a) डारे ठोड़ी -गाड़, गहि नैन-बटोही मारि ।
चिलक चौंध में रूप ठग, हाँसी-फाँसी डारि ।।
तंत्रिनाद, कवित्त रस, सरस राग, रति-रंग।
अनबुड़े बुड़े , तरे जे बुड़े सब अंग।।
(b) जौ रोऊँ तो बल घटे, हँसौ तो राम रिसाई।
मन ही माहि बिसूरणा, ज्यू धुण काठहि खाइ ।।
हँसि हँसि कंत न पाइए, जिनि पाया तिनि रोइ ।
जो हाँसे ही हरि मिले, तौ नहीं दुहागनि होई।।
(c) हम बाह्य उन्नति पर कभी मरते न थे संसार में,
बस मग्र थे अन्तर्गजत के अमृत-पाराबार में।
जड़ से हमें क्या, जबकि हम थे नित्य चेतन से मिले,
हैं दीप उनके निकट क्या जो पद्य दिनकर से खिले।
(d) ईश जानें, देश का लज्जा-विषय
तत्व है कोई कि केवल आवरण
उस हलाहल-सी कुटिल द्रोहाग्रि का
जो कि जलती आ रही चिरकाल से
स्वार्थ-लोलुप सभ्यता के अग्रणी
नायकों के पेट में जठराग्नि-सी।
(e) सूरा सुरभिमय वदन अरुण वे
नयन भरे आलस अनुराग;
कल कपोल था जहाँ बिछलता
कल्पवृक्ष का पीत पराग।
विकल वासना के प्रतिनिधि थे
सब मुरझाये चले गये।
आह ! जले अपनी ज्वाला से
फिर वे ज़्ल में गले, गये ।
2. (a) “कबीर जनता के कवि थे और जनता के प्रति उनके असीम करुणा और अनुराग का भाव था।” इस कथन की सोदाहरण समीक्षा कीजिए।
(b) क्या समकालीन आलोचना तुलसीदास के काव्य की प्रगतिशीलता को अनदेखा कर रही है? उदाहरणों से पुष्ट युक्तियुक्त उत्तर दीजिए।
3. (a) बताइए कि किस प्रकार सूर की काव्यकला पौराणिकता में नवीनता का संचार करके प्रसंगों को विशिष्ट और लोकग्राह्य बना देती है।
(b) ‘पद्मावत’ में कल्पना में इतिहास का पैबंद लगाने वाली काव्य-चेतना के पीछे क्या कारण हो सकते हैं?
4. (a) अंतस और बाह्य जगत की एकाकारता के सजीव प्रतीक के रूप में ‘असाध्यवीणा’ की समीक्षा कीजिए।
(b) इस बात पर विचार कीजिए कि ‘राम की शक्तिपूजा’ की संरचना में एक पराजित और दूसरे अपराजित मन की आस्तित्वानुभूति के साथ-साथ ‘तुलसीदास’ और ‘सरोज स्मृति’ का सार भी सन्निहित है।
खण्ड ‘B’
5. निम्नलिखित गद्यांशों की संदर्भ-सहित व्याख्या करते हुए उसके रचनात्मक सौंदर्य को उद्घाटित कीजिए :
(a) “महाराज,वेदान्त ने बड़ा ही उपकार किया। सब हिन्दू ब्रह्म हो गये । किसी की इटिकर्तव्यता बाकी ही न रही। ज्ञानी बनकर ईश्वर से विमुख हुए, रुक्ष हुए, अभिमानी हुए और इसी से स्नेहशून्य हो गए। जब स्नेह ही नहीं तब देशोद्धार का प्रयत्न कहाँ!”
(b) मनुष्य सारी पृथ्वी छेंकता चला जा रहा है। जंगल कट-कट कर खेत,गाँव और नगर बनते चले जा रहे हैं। पशु-पक्षियों का भाग छिनता चला जा रहा है। उनके सब ठिकानों पर हमारा निष्ठुर अधिकार होता चला जा रहा है। वे कहाँ जायँ । …
(c) तुलसीदास की भक्ति वर्ण, जाति, धर्म आदि के कारण किसी का बहिष्कार नहीं करती। जो ‘अति अप-रूप’ समझे जाते हैं, उन ‘आभीर जवन किरात खस स्वप्नदि ‘ के लिए भी वह कहते हैं कि राम का नाम लेकर वे भी पवित्र हो जाते हैं। इससे उनकी भक्ति का जनवादी तत्व अच्छी तरह प्रकट हो जाता है। जिन तमाम लोगों के लिए पुरोहित वर्ग ने उपासना और मुक्ति के द्वार बंद कर दिए थे, उन सब के लिए तुलसी ने उन्हे खोल दिया। तुलसी की जाति और कुलीनता पर पुरोहितों के आक्षेपों का यही कारण था।
(d) “कवित्व वर्नमय चित्र है, जो स्वर्गीय भावपूर्ण संगीत गाया करता है। अंधकार का आलोक से, सत् का असत् से, जड़ का चेतन से, और बाह्य जगत का अन्तर्जगत से सम्बन्ध कौन कराती है? कविता ही न!”
(e) और यह राजधानी ! जहाँ सब अपना है, अपने देश का है … पर कुछ भी अपना नहीं है, अपने देश का नहीं है।
तमाम सड़कें हैं जिन पर वह जा सकता है, लेकिन वे सड़कें कहीं नहीं पहुँचाती । उन सड़कों के किनारे पर हैं; बस्तियां हैं पर किसी भी घर में वह नहीं जा सकता। उन घरों के बाहर फाटक हैं, जिन पर कुत्तों से सावधान रहने की चेतावनी है, फूल तोड़ने की मनाही है और घंटी बजाकर इन्तजार करने की मजबूरी है।
6. (a) जिस तरह से अपने ललित निबंधों में कुबेरनाथ राय भारत ही नहीं, विश्व-भर के नये-पुराने रूपों को हृदय और बुद्धि की कसौटी पर जाँचने हैं, निबन्ध-क्षेत्र के लिए वह नया बौद्धिक रस संजीवनी बना है – इसका विवेचन कीजिए।
(b) श्रद्धा और भक्ति के सामाजिक उपयोग एवं दुरुपयोग पर विचार कीजिए।
7. (a) रंगमंचीय संभावनाओं की दृष्टि से किए गए एक प्रयोग के रूप में ‘आषाढ़ का एक दिन’ नाटक पर विचार कीजिए।
(b) ‘महाभोज’ में समकालीन दलगत राजनीति का जन-विरोधी चरित्र विश्वसनीय तरीके से उभारा गया है – इस बात की परीक्षा कीजिए।
8. (a) ‘रेणु पाठक को छपे हुए पृष्ठों की सुरक्षित दुनिया से बाहर खींचते हैं और मौखिक परम्परा में प्रवेश कराते हैं।” ‘मैला आँचल’ के सन्दर्भ में इस वक्तव्य का विवेचन कीजिए।
(b) प्रेमचंद की कहानियों में आधुनिक विमर्शों के स्वरूप की पड़ताल कीजिए।