विश्व की प्रजातियाँ तथा जनजातियाँ

मानव प्रजाति से तात्पर्य उस मानव वर्ग से है, जो वंशानुक्रम के द्वारा शारीरिक लक्षणों में समानता रखता हो। यह एक जैविक विचार है जिसका संबंध उस वर्ग से होता है जिसमें जैविक रूप से कुछ समानता दिखाई पड़ती है। किसी भी मानव प्रजाति के शारीरिक लक्षण वंशानुक्रम द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी भविष्य में सतत रहते हैं। प्रजाति के लक्षण और वंशज गुण आनुवंशिकता के द्वारा संक्रमण करते रहते हैं। अतः वे मानव वर्ग जिसके सभी मनुष्यों की शारीरिक रचना के लक्षण जैसे त्वचा का रंग, सिर की लम्बाई एवं चौड़ाई, बाल, नाक का नुकीलापन या चपटापन, होठों की मोटाई, रक्त वर्ग आदि एक जैसे हो, वे प्रजाति के अन्तर्गत सम्मिलित किए जाते हैं। ये विशेषताएँ जीन (Gene) के माध्यम से पीढ़ी दर पीढ़ी संचालित होती हैं।

मानव विकास का क्रम (Evolution of Human)

आदि मानव से वर्तमान मानव के विकास का क्रम निम्नलिखित है-

(i) पिथेकैनथोपस- इसे आदि मानव समझा जाता है। पिथेकैनथोपस शब्द का अर्थ सीधा खड़ा होने वाले मानव अर्थात् वानर मानव से है। यह वनमानुष तथा वर्तमान मानव के बीच की कड़ी है। इस मानव की हड्डियाँ जावा द्वीप पर पाई गई थीं।
(ii) सिनेनथोपस- यह आदि मानव के बाद का मानव था। इस मानव का मस्तिष्क वनमानुष की अपेक्षा कुछ बड़ा था। इस मानव के शरीर में कई परिवर्तन हुए हैं।
(iii) हाइडिलबर्ग मानव- यह मानव वर्तमान मनुष्य से अधिक मिलता जुलता है। हाइडिलबर्ग मानव प्लीस्टोसीन काल के प्रथम हिमयुग का है। जर्मनी के हाइडिलबर्ग के समीप इस मानव के निचले जबड़े की हड्डियाँ मिली थीं।
(iv) रोडेशियन मानव- रोडेशियन मानव प्राचीन पूर्वज तथा वर्तमान मानव के बीच की नस्ल का प्रतिनिधि है। इनके दाँत मानव के दाँतों के समान थे। इनकी हड्डियाँ अफ्रीका के रोडेशिया प्रान्त में मिली थीं।
(v) निएण्डरथल मानव- इस मानव की शरीर रचना होमोसेपिऐन्स अर्थात् वर्तमान मानव से बहुत कुछ मिलती है। यह मानव वर्तमान मानव के ठीक पूर्ववर्ती पूर्वज थे। निएण्डरथल मानव के अवशेष पश्चिमी यूरोप, जर्मनी तथा जिब्राल्टर में मिले थे।
प्राचीन मानव वातावरण की दशाओं से अपना पूर्ण सामंजस्य स्थापित न कर पाने के कारण धीरे-धीरे संसार से विलुप्त हो गये। वर्तमान मानव का विकास विशेष वातावरणीय दशाओं में हुआ है। इस कारण, वर्तमान मानव प्रजाति के समस्त सदस्यों की शरीर रचना मनुष्य को वनमानुषों से बिल्कुल अलग करती है।

मानव प्रजाति के विकास का कारण (Causes of the Development of Human Races )

मानव के उद्भव के साथ प्रारम्भ में प्रजातिगत समानता थी अर्थात् समस्त मानव प्रजाति आधारभूत गुणों में एक समान थी। वातावरण के परिवर्तन से उत्पन्न शारीरिक विभिन्नताएँ केवल ऊपरी अंगों में थीं। शारीरिक परिवर्तन केवल ऊपरी लक्षणों में था जो त्वचा वर्ण, सिर की आकृति, नाक, आँख इत्यादि में हुए थे मानव प्रजातियों के शारीरिक लक्षणों में अन्तर उत्पन्न होने के निम्नलिखित कारण हैं-

  1. जलवायु परिवर्तन
  2. ग्रन्थि रसों का प्रभाव
  3. चयन व जैविक परिवर्तन
  4. प्रवास तथा प्रजातियों का मिश्रण
  • जलवायु परिवर्तन- मानव प्रजाति का विकास प्राचीन युग में ऐसे समय पर हुआ जब प्राकृतिक शक्तियों का नियन्त्रण मानव तथा पशु के विकास पर था। इन प्राकृतिक शक्तियों में सबसे अधिक प्रभाव जलवायु का पड़ा। उष्ण कटिबंध में निवास करने वाले लोगों के रंग काले, सिर लम्बे तथा होंठ मोटे होते हैं। अधिक सूर्यातप वाले प्रदेशों में लाखों वर्ष व्यतीत करने पर मानव प्रजाति के त्वचा का रंग काला हो गया तक उनके शारीरिक लक्षण जलवायु के अनुसार विकसित हो गये। जलवायु का प्रभाव केशों की आकृति, नेत्र रंग, सिर की आकृति तथा जबड़ों की बनावट पर भी होता है। विभिन्न भूगोलविदों जैसे हटिंगटन तथा सैम्पुल ने जलवायु का प्रभाव मनुष्य के स्वभाव व व्यवहार पर भी बताया है।
  • ग्रन्थि रसों का प्रभाव- शरीर की आन्तरिक ग्रन्थियों के स्राव को हारमोन कहते हैं। इन ग्रन्थियों में पीयूष ग्रन्थि, पिनियल ग्रन्थि, थाइरॉइड तथा एड्रीनल ग्रन्थि प्रमुख है। पीयूष या पिट्यूटरी ग्रन्थि के असाधारण विकास होने पर ढोड़ी, नाक व भी बहुत बड़े हो जाते हैं। एड्रीनल ग्रन्थि का प्रभाव त्वचा के वर्ण पर होता है। थाइरॉइड ग्रन्थि के छोटे होने से मनुष्य का कद, नाक व केश अविकसित व चेहरा सपाट रहता है।
  • चयन तथा जैविक परिवर्तन- जीन के माध्यम से मूल शारीरिक लक्षण आगे की पीढ़ियों में जारी रहते हैं। प्रत्येक मानव वर्ग के लक्षण प्राकृतिक चयन के द्वारा बदलते रहते हैं। चयन का सबसे प्रभावी कारण प्रवास है। मानव के दीर्घकालीन प्रवास के द्वारा शारीरिक लक्षणों में अत्यधिक परिवर्तन होता है।
  • प्रजातीय मिश्रण- प्रवास द्वारा प्रजातियों का विभिन्न महाद्वीपों में विस्थापन हुआ। आक्रमण तथा उपनिवेश स्थापित करने के क्रम में प्रजातियों का मिश्रण हुआ। पारस्परिक सम्पर्क से विभिन्न प्रजातियों के आपस में विवाह संबंध स्थापित हुए तथा मिश्रित प्रजातियों का विकास हुआ।

प्रजातियों के शारीरिक लक्षण (Physical Characteristics of the Races)

विभिन्न विद्वानों ने शारीरिक लक्षणों के आधार पर प्रजाति वर्गीकरण के प्रयास में निम्नलिखित मानकों का प्रयोग किया है- (1) त्वचा का रंग
(2) बालों का रंग एवं बनावट
(3) कद
(4) कपाल सूचकांक
(5) नासा सूचकांक

(1) त्वचा का रंग- त्वचा के रंग के आधार पर मानव प्रजातियों को तीन वर्गों में विभाजित किया गया है-

(i) कॉकेसाइड- इन्हें श्वेत प्रजाति या ल्यूकोडर्म कहा जाता है।
(ii) मंगोलाइड – इन्हें पीली प्रजाति या कैथोडमं कहा जाता है।
(iii) नीग्रोइड- इन्हें काली प्रजाति या मैलानोडर्म कहा जाता है।

(2) बालों का रंग एवं बनावट – बालों का रंग एवं बनावट के आधार पर मानव प्रजाति को तीन वर्गों में बाँटा गया है-

(i) यूलोट्रिकी -नीग्रो एवं नेगरिटो प्रजातियों को इसी वर्ग में रखा जाता है। इस प्रजाति के बाल छल्लेदार होते हैं।
(ii) सीमोदिकी – इस वर्ग में कॉकेसाइड प्रजाति को रखा जाता है। इस प्रजाति के बाल लहरदार होते हैं ।
(iii) लियोट्रिकी- इस प्रजाति के बाल सीधे होते हैं। इस प्रकार के बाल मंगोलाइड प्रजाति में मिलते हैं।

(3) कद- कद के आधार पर मानव प्रजाति को चार वर्गों में विभाजित किया गया है-

(i) लंबा कद 170 से. मी. या अधिक
(ii) औसत से ऊपर- 165 से.मी. से 170 से.मी.
(iii) औसम से कम- 160 से.मी. से 165 से.मी.
(iv) छोटा कद- 160 से. मी. से कम

(4) कपाल सूचकांक- कपाल की लम्बाई एवं चौड़ाई का अनुपात पुरुषों, स्त्रियों एवं बच्चों में लगभग एक समान होता है। इस मानक का प्रयोग प्रजाति वर्गीकरण में किया जाता है। ग्रिफिथ टेलर ने प्रजाति वर्गीकरण के लिये इस सूचकांक को प्रधानता दी।

कपाल सूचकांक = कपाल की चौड़ाई/कपाल की लम्बाई x 100

76 से कम – दीर्घकपाली – कॉकेसाइड
76 से 81 – मध्यकपाली – मंगोलॉयड
81 से अधिक – पृथुकपाली- नीग्रोइड

(5) नासा सूचकांक – नाक की बनावट के आधार पर भी प्रजाति वर्गीकरण को सुनिश्चित किया जाता है।

नासा सूचकांक = नाक की चौड़ाई/ नाक की लम्बाई x 100
70 से कम – तनुनासा – कॉकेसाइड
70 से 84.9 – मध्यनासा- मंगोलॉयड
85 से अधिक – चिपिटनासा – नीग्रोइड्

उपरोक्त मानकों के अलावा आँखों का रंग एवं आकार, रक्त वर्ग आदि का प्रयोग प्रजाति वर्गीकरण के लिये किया जाता है।

प्रजातियों के संबंध में ग्रिफिथ टेलर का वर्गीकरण (Griffith Taylor ‘s Classification in Term of Races)

शीर्ष सूचकांक तथा बालों की बनावट के आधार पर टेलर ने मानव प्रजाति का वर्गीकरण किया। टेलर ने मानव प्रजातियों के विकास का उद्गम क्षेत्र मध्य एशिया माना जहाँ से विकसित होकर प्रजातियों का बाहर की ओर प्रसार हुआ। इसलिये, प्र. आरम्भ में विकसित हुई प्रजातियाँ महाद्वीपों के बाहरी क्षेत्रों में बस गयीं तथा सबसे बाद में विकसित हुई प्रजातियाँ उद्गम प्रदेशों के पास ही बसीं टेलर ने इस प्रजाति वर्गीकरण के आधार पर प्रवास कटिबंध सिद्धान्त प्रतिपादित किया। शीर्ष सूचकांक के आधार पर टेलर ने मानव प्रजातियाँ बताई-

(1) नैगरिटो (2) नीग्रो (3) ऑस्ट्रेलॉयड (4) मैडिटरेनियन (5) नॉर्डिक (6) अल्पाइन (7) मंगोलियन

(1) नैगरिटो – यह प्रजाति काले रंग की होती है। इनकी नाक चौड़ी तथा चपटी होती है और बाल छल्लेदार होते हैं। इनका जबड़ा आगे की ओर निकला होता है जिसके कारण चेहरा बाहर की ओर निकला हुआ उत्तल या अवमुख हो जाता है। ये श्री लंका, मलाया, फिलिपाईन द्वीप और न्यूगिनी के अतिरिक्त कांगो प्रदेश केमरून तथा अंडमान द्वीप में रहते हैं। इस प्रजाति का शिरस्थ सूचकांक 68 से 70 तक रहता है।

(2) नीग्रो- इस प्रजाति का रंग काला होता है। इनके बाल लम्बे तथा ऊन जैसे होते हैं। नीग्रो प्रजाति की नासिका चौड़ी तथा चपटी होती है। इस प्रजाति का शीर्ष सूचकांक 70 से 72 तक होता है। यह प्रजाति अफ्रीका में सूडान तथा पश्चिमी अफ्रीका के गिनी तट के प्रदेशों के अलावा दक्षिणी यूरोप तथा एशिया में भी निवासित है।

(3) ऑस्ट्रेलॉयड- इस प्रजाति की त्वचा का रंग चमकदार कत्थई, चॉकलेटी तथा जैतूनी होता है। ऑस्ट्रेलॉयड प्रजाति लम्बे सिर की होती है जिसका शिरस्थ सूचकांक 72 से 74 होता है। इनके बाल ऊन के समान घुंघराले होते हैं तथा जबड़े कुछ आगे निकले रहते हैं। इस प्रजाति की नाक मध्यम चौड़ाई की होती है। ऑस्ट्रेलॉयड प्रजाति के लोग ब्रिटिश उपनिवेश बनने से पूर्व ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप पर रहते थे। भारत के मध्य व दक्षिणी भाग में ऑस्ट्रेलॉयड प्रजाति अधिक है। न्यू मैक्सिको में भी इस प्रजाति के चिह्न मिलते हैं।
(4) मैडिटरेनियन- इस प्रजाति के लोग लम्बे सिर के होते हैं। तथा शिरस्थ सूचकांक 74 से 77 तक होता है इनकी नाक अण्डाकार, बाल घुंघराले तथा जबड़े थोड़ा आगे की ओर निकले होते हैं। सबसे प्राचीन मैडिटरेनियन प्रजाति को औरिंगनेशियन कहते हैं। यह प्राचीन प्रजाति छोटे कद की थी। यह प्रजाति छः बसे हुए महाद्वीपों के बाहरी सिरों पर पायी जाती है।
(5) नॉर्डिक- नॉर्डिक प्रजाति की त्वचा का रंग हल्का भूरा तथा गुलाबी झलक लिये रहता है। ये मध्यम सिर के होते हैं जिनका शिरस्थ सूचकांक 78 से 82 तक होता है इनका चेहरा लगभग चपटा, नाक लम्बी तथा अग्रभाग चोंच के समान मुड़ा होता है। अफ्रीका महाद्वीप को छोड़कर लगभग सभी महाद्वीपों में यह प्रजाति निवास करती है।
(6) अल्पाइन – अल्पाइन प्रजाति की त्वचा का रंग भूरे से श्वेत तक होता है। यह प्रजाति चौड़े सिर वाली होती है जिसका शिरस्थ सूचकांक 85 से 90 तक होता है। इनकी नाक पतली तथा बाल काफी सीधे होते हैं। स्विस स्लाव, आरमेनियन तथा अफगान लोग अल्पाइन प्रजाति की पश्चिमी शाखा के अन्तर्गत आते हैं जिनका रंग अधिक गोरा होता है तथा इसकी पूर्वी शाखा में फिन्स, मगवार, मन्चू तथा सिओक्स होते हैं। जिनकी त्वचा का रंग कुछ पीला होता है।
(7) मंगोलियन- मंगोलियन प्रजाति लगभग गोल सिर वाली होती है जिसका शिरस्थ सूचकांक 85 से 90 तक होता है। इस प्रजाति के बाल सीधे व नाक चपटे होते हैं। इनका जबड़ा अन्दर की ओर तथा चेहरा अवतल होता है। यह प्रजाति प्रारम्भिक काल में एशिया के विशाल केन्द्रीय भाग में रहती थी। इस प्रजाति के लोग अल्पाइन, नॉर्डिक तथा मेडिटरेनियन प्रजाति से मिश्रित हो गये तथा यह नई मिश्रित प्रजाति चीन तथा उसके पड़ोसी देशों में बस गई।

टेलर का प्रवास कटिबंध सिद्धांत- टेलर ने मानव प्रजातियों के संबंध में इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया। टेलर ने समस्त मानव प्रजातियों का उद्गम प्रदेश मध्य एशिया में कैस्पियन यूराल के समीपवर्ती क्षेत्र को माना। इस सिद्धान्त के अनुसार जिन प्रजातियों का विकास सबसे पहले हुआ, वे सभी प्रजातियाँ प्रवास करके महाद्वीपों के सबसे बाहरी कटिबंधों में जा बस तथा बाद में विकसित हुई प्रजातियाँ क्रम से महाद्वीपों के अधिकाधिक भीतरी भागों में निवासित हुई। मानव के सांस्कृतिक विकास में निम्नलिखित जैविक विशेषताओं का योगदान है-

(i) अंगूठे की अभिमुखचारिता
(ii) सीधे खड़े होने की क्षमता
(iii) त्रिविम दृष्टि
(iv) जटिल मस्तिष्क
(v) सम्प्रेषण क्षमता

विश्व की जनजातियाँ (Tribes of World)

  1. बुशमैन: ये हब्शी प्रजाति के लोग हैं, इनकी आँखे चौड़ी व त्वचा काली होती है। इस जनजाति का मुख्य व्यवसाय आखेट व जंगली वनस्पति संग्रह करना है ये लोग सर्वभक्षी हैं। दक्षिण अफ्रीका के कालाहारी मरुस्थल में निवास करने वाली जनजाति अब लेसोथे, नटाल व जिम्बाब्बे में पाई जाती है।
  2. बद्दू: कबीले के रूप में चलवासी जीवन व्यतीत वाली बद्दू जनजाति नैगरिटो प्रजाति से संबंधित पशुपालन करते हैं। ऊँट पालने वाले बद्दू को स्वाला हैं। यह जनजाति तंबुओं में निवास करती है। बह नेफद मरुस्थल में रहते हैं।
  3. पिग्मी: पिग्मी जनजाति के लोग काले और नाटे कट नैगरिटो प्रजाति के लोग हैं। इनका कद सामान्यतः 1 से मीटर तक होता है जो विश्व के सभी मानवों में सबसे है। ये आखेटक होते हैं एवं यही इनकी अर्थव्यवस्था आधार है। ये गैबोन, युगांडा तथा न्युगिनी के वनों में जाते हैं।
  4. सेमांगः सेमांग जनजाति के लोग नैगरिटो प्रजाति से संबंधित हैं। इनका जीवन वनों की उपज तथा आखेट पर निर्भर क है। सेमांग जनजाति के मानवों का कद नाटा, रंग गहरा बाल घुंघराले तथा काले होते हैं। ये मलाया के पर्वतीय भाम अंडमान, फिलीपीन्स एवं मध्य अफ्रीका में पाये जाते हैं।
  5. बोरो: बोरो जनजाति आदिम कृषक के रूप में जीवन यापन करती है। शारीरिक रूप से यह जनजाति रेड इंडियन – समान है। ये लड़ाकू व निर्दयी व्यवहार के होते हैं। इन उत्सवों में मानव हत्या व मांस भक्षण अधिक प्रचलित बोरो जनजाति मानव खोपड़ियों को अपनी झोपड़ियों प विजय चिह्न के रूप मे लगाते हैं। यह जनजाति आमेजिन बेसिन, ब्राजील, पेरू व कोलंबिया में रहती है।
  6. मसाई: मसाई जनजाति में मेडिटेरियन तथा नैगेरिये प्रजाति क मिश्रण की झलक मिलती है। यह जनजाति मुमक्कड़ और पशुचारक के रूप में जीवन निर्वाह करते हैं। मानते हैं। जिन झोपड़ियों में ये लोग निवास करते हैं उन्हीं काल गाय को पवित्र कहा जाता है। अफ्रीका के टगानिका केन्या पूर्वी युगान्डा आदि क्षेत्रों में इस जनजाति का निवास स्थान है।
  7. सकाई: इस आदिम जनजाति का रंग साफ, लंबा कद तथा छरहरा शरीर होता इनका सिर लंबा तथा बाल काले व घुंघराले होते हैं। प्राचीन आदिम प्रकार की कृषि, बागानी कृषि एवं आखेट इनका प्रमुख व्यवसाय है। मलाया प्रायद्वीप व मलेशिया के वनों में यह जनजाति निवास करती है।
  8. एस्किमोः यह जनजाति मंगोलायड प्रजाति की है। इनका मुख्य व्यवसाय आखेट है। ये वालरस श्वेत भालू, रेडियर, सील आदि का शिकार करते हैं। हारपून नामक अस्त्र तथा उमियाक नाव की मदद से ये ह्वेल जैसी बड़ी मछलियों का शिकार कर लेते हैं। इनके निवास स्थान को इग्लू कहते हैं जो बर्फ के टुकड़ों से बना होता है। यह जनजाति अमेरिका के अलास्का से ग्रीनलैंड तक के टुंड्रा प्रदेशों में रहती है।
  9. खिरगीजः खिरगीज जनजाति मंगोल प्रजाति के होते हैं। इनकी त्वचा का रंग पीला, बाल काला, कद छोटा, आँखे छोटी व तिरछी होती हैं। इस जनजाति के लोग ऋतु प्रवास करने वाले पशुचारक चलवासी हैं। इनके निवास गृह गोलकार तंबुओं के बने होते हैं जिसे युद्ध कहा जाता है। यह जनजाति “मध्य एशिया में पामीर पठार एवं ध्यानसान पर्वतमाला में निवास करती है।
  10. पापुआन: पापुआन जनजाति पिग्मी जाति से मिलती जुलती है। ये खूखार प्रवृत्ति के अंधविश्वासी लोग हैं। इनकी अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि है; कुछ पापुआन पशुपालन भी करते हैं। इनका कद नाटा तथा त्वचा का रंग गहरा कत्थई होता है। यह जनजाति प्रशांत महासागर में स्थित पापुआ न्यूगिनी द्वीप में निवास करती है।
  11. युकागीरः यह जनजाति मंगोलायड प्रजाति से संबंधित है। यूकागीर जनजाति की अर्थव्यवस्था का आधार शिकार व मत्स्यपालन है। ये जनजातियाँ उत्तर-पूर्वी साइबेरिया के वखयास्क और स्टेनोवाय पर्वतों पर निवास करती हैं।
  12. मायाः माया जनजाति के लोग मूलतः कृषक हैं। यह जनजाति मध्य अमेरिका के ग्वाटेमाला तथा होंडूरास में निवास करती है।
  13. जूलूः जूलू मूलत: खाद्यान्न उत्पादक कृषक व पशुपालक है जो गुनी भाषा बोलते हैं। यह जनजाति दक्षिण अफ्रीका के नटाल प्रान्त में रहती है।
  14. कोसेक्स: इस जनजाति का प्रमुख व्यवसाय कृषि हैं। ये खूंखार लड़ाकू तथा वीर हैं। कोसेक्स जनजाति काला सागर व कैस्पियन सागर के निकटवर्ती उत्तरी भागों में निवास करती है।
जनजातिप्रकृति
कज्जाक पशुचारक चलवासी
माओरीकृषि, आखेट व वनोत्पाद, संग्रह
बोअर पशुपालक एवं कृषक
मगयार कृषक
अफरीदी कुशल योद्धा व वीर

विश्व की विलुप्त जनजातियाँ (Extinct Tribes of the World)

जनजातिक्षेत्र
हाज्दा तंजानिया
कुन्गकालाहारी
अपाचेओक्लोहामा मैदान (यू.एस.ए.)
यनोमनीब्राजील व वेनेजुएला की सीमा पर
युकागीरसाइबेरिया क्षेत्र
चुक्वीउत्तर- पूर्वी साइबेरिया व उत्तरी अमेरिका
ओन्गेअंडमान द्वीप
सेंटीनेलीसअंडमान-निकोबार


पर्वतीय क्षेत्रों में निवास करने वाली जनजातियाँ (Tribes in the Mountain Areas)

क्षेत्रजनजातियाँ
छोटा नागपुर क्षेत्रकोल, संथाल, हो, भील
नीलगिरी पहाडियाँटोडा
श्रीलंकावेद्दा
फिलीपीन्स एटाज
मलेशियासेमांग
वेल्स तथा कार्नवालवेल्स जनजाति
स्कॉटलैंडहाइलैंडर
चेक एवं स्लोवाकस्लोवाक जनजाति

विश्व की प्रमुख जनजातियाँ (Major Tribes of the World)

जनजातियाँक्षेत्र
एस्कीमोकनाडा व ग्रीनलैंड के टुंड्रा प्रदेश
लैपयूरोप का टुंड्रा प्रदेश
समोएड्सएशियाई टुंड्रा
तातार साइबेरिया
माओरी न्यूजीलैंड
एबोर्जिन्सपश्चिमी व मध्यवर्ती ऑस्ट्रेलिया (ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासी)
बाटु दक्षिण अफ्रीका एवं मध्य अफ्रीका
बर्बर उत्तरी अफ्रीका
बिन्दीबू पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया
फिन्सयूरोपीय टुंड्रा
गाउचोउरुग्वे एवं अर्जेन्टीना का पम्पास क्षेत्र
हेमाइट्सउत्तर-पश्चिमी अफ्रीका
खिरगीजमध्य एशिया
किकूयू केन्या
मसाई पूर्वी अफ्रीका
पिग्मी जायरे (कांगो बेसिन)
पपुआन्सन्यूगिनी
रेड इण्डियनउत्तरी अमेरिका
वेद्दाश्रीलंका
ओस्तयाक, तुंगु, याकूत, यूकागिर, चुकुची, कोरयाकएशियाई टुंड्रा
जुलूदक्षिण अफ्रीका का नटाल प्रांत
सेमांगमलेशिया
पूनॉनबोर्नियो
बुशमैनकालाहारी मरुस्थल
यूकाधिरसाइबेरिया
औकाइक्वेडोर
बोरोदक्षिण अमेरिका का आमेजिन बेसिन
बद्दूअरब
आइनूजापान
डाटेन्टाटकालाहारी (बोत्सवाना)
कज्जाकमध्य एशिया
इग्बो नाइजीरिया
खिरगीज मध्य एशिया
हौसानाइजीरिया
फल्लाह कृषकनील नदी की घाटी
अफरीदीपाकिस्तान
मगयारपूर्वी यूरोप
मायामैक्सिको
बोअरदक्षिण अफ्रीका

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