परीक्षा का नाम (Exam Name): UPPSC/UPPCS – 2013
विषय (Subject) : सामान्य हिंदी (General Hindi)
माध्यम (Medium): Hindi

नोटः

  • सभी प्रश्न अनिवार्य हैं।
  • प्रत्येक प्रश्न के अंक के अंत में अंकित हैं।
  • पत्र, प्रार्थना-पत्र या किसी अन्य प्रश्न के उत्तर के साथ अपना अथवा अन्य का नाम, पता एवं अनुक्रमांक न लिखें। आवश्यक होने पर क, ख, ग लिख सकते हैं।

1. इस युग का कवि हृदयवादी हो या बुद्धिवादी, स्वप्नद्रष्टा हो यह यथार्थ का चित्रकार, अध्यात्म से बँधा हो या भौतिकता का अनुगत, उसके निकट यही एक मार्ग शेष है कि वह अध्ययन में मिली जीवन की चित्रशाला से बाहर आकर जड़ सिद्धान्तों का पाथेय छोड़कर अपनी सम्पूर्ण संवेदना शक्ति के साथ जीवन में घुल-मिल जावे । उसकी केवल व्यक्तिगत सुविधा- असुविधा ओज गौण है । उसकी केवल व्यक्तिगत हार-जीत आज मूल्य नहीं रखती, क्योंक्कि उसके सारे व्यष्टिगत सत्य की आज समष्टिगत परीक्षा है । ऐसी क्रान्ति के अवसर सच्चे कलाकार पर – पीर, बावर्ची, भिश्ती खरुरकी कहावत चरितार्थ हो जाती है – उसे स्वप्नद्रष्टा भी होती है, जीवन के क्षुत्क्षाम निम्न स्तर तक मानसिक खाद्य भी पहुँचाना है दुषित मानवता को संवेदना का जल देना है और सबके अज्ञान का भार भी सहना है उसी के हृदय के तार इतने खिचे सधे होते हैं कि हलकी सी साँस से भी झंकृत हो सकें, उसी के जीवन में इतनी विशालता संभव है कि उसमें सबके वर्गभेद एक होकर समा सकें और उसी की भावना का अंचल इतना अछोर बन सकता है कि सबके आँसू और हँसी संचित कर सकें ।

(क) उपर्युक्त अवतरण का भावार्थ संक्षेप में लिखिए ।
(ख) उपर्युक्त गद्यांश के आधार पर बताइये कि कवि का दायित्व क्या है ?
(ग) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए ।

2. माना कि साहित्य से आनन्द आता है, लेकिन किस तरह का आनन्द आता है ? उससे आपके कर्ममय जीवन पर किस तरह प्रभाव पड़ता है ? किस तरह के संस्कार आपके मन में बनते-बिगड़ते हैं ? ये तमाम समस्याएँ साहित्यशास्त्र की ही समस्याएँ हैं । इन समस्याओं के उठते ही साहित्यशास्त्री दो खेमों में बँटे हुए दिखाई देते हैं । एक में वे हैं, जो आनन्द की परिणति आनन्द ही में मानते हैं । वे साहित्य के प्रभाव से बनने-बिगड़ने वाले मनुष्य के कर्ममय जीवन पर साहित्य की प्रतिक्रिया – पर विचार करना आवश्यक नहीं समझते । दूसरे खेमे में वे हैं, जो साहित्य को शुद्ध आनन्द रूप नहीं मानते, वरन मनुष्य जीवन में उसके प्रभाव पर भी विचार करते हैं, यानी उसकी उपयोगिता भी स्वीकार करते हैं। पहले खेमे में तमाम भाववादी (आइडियलिस्ट) विचारक आते हैं, जो साहित्य को केवल मनोरंजन की वस्तु समझते हैं । इन्हीं में वे रूपवादी शामिल हैं, साहित्य की व्यापकता और सार्वजनीयता उसके कौशल या लिप में देखते हैं । इनके विरुद्ध सोद्देश्य साहित्य का समर्थन करने वाले, सौंदर्य को उपयोगी मानने वाले केवल भौतिकवादी ही नहीं हैं, वरन वे तमाम वृक्षवादी, भाववादी, धार्मिक और जनसेवी साहित्यकार भी हैं जो भौतिकवादी दर्शन न मानते हुए भी जनता से प्रेम करने के कारण उसके उपकार के लिए साहित्य रचते रहे है 1

(क) उपर्युक्त अवतरण का उचित शीर्षक लिखिए ।
(ख) साहित्य में कलात्मक आनंद और उपयोगिता का तुलनात्मक विवेचन कीजिए ।
(ग) उपर्युक्त अवतरण का संक्षेपण लिखिए ।

3. (क) मुजफ्फर नगर (उ.प्र.) में हुए दंगों से चिन्तित केन्द्र सरकार की ओर से उत्तर प्रदेश की राज्य सरकार को दंगा नियंत्रण और घटना की जाँच का निर्देश देने वाला एक सरकारी पत्र प्रस्तुत कीजिए ।
(ख) कार्यालय आदेश और अधिसूचना में क्या अन्तर है ? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए ।

4. (क) (i) नीचे दिये शब्दों में उपसर्ग और मूल शब्द को अलग कीजिए:

अनोखा, उनींदा घड़े निकम्मा, कुढ

(ii) निम्नलिखित शब्दों में से प्रत्ययों को अलग कीजिए:

बतंगड़, घुमंतू, भनक, झंझट, बेलन

(ख) निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए:

संकल्प, आत्मा, उद्घाटन, उद्धत, प्रसारण, समष्टि, जटिल, ऋणात्मक, निषिद्ध, स्मरण

(ग) निम्नलिखित वाक्यांशों के लिए एक-एक शब्द लिखिए:

(i) जो छाती के बल गमन करता है ।
(ii) जिस समय बड़ी मुश्किल से भिक्षा मिलती है ।
(iii) किसी के पास रखी हुई दूसरे की वस्तु
(iv) जिस पर विश्वास किया गया है
(v) जो दायर मुकदमे का बचाव करे

(घ) निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध कीजिए :

(i) भले ही दस अपराधी छूट जाएँ, पर एक भी सिरपराधी को दण्ड नहीं मिलना चाहिए ।
(ii) प्रभु, आप मेरी कुटिया में पधारे, मैं कृत्यकृत्य हुआ ।
(iii) एक माँ की दृष्टि में उसका बालक ही सबसे सुन्दरतम होता है ।
(iv) यह संपदा मैंने सिर्फ अपनी ताकत के बल पर अर्जित की है ।
(v) दरवाजे का ताला टूटा देखकर मैं सशंकित हो उठा ।

5. निम्नलिखित मुहावरों और लोकोक्तियों का अर्थ स्पष्ट करके वाक्य में प्रयोग कीजिए:

(i) उठ जाना ।
(ii) उठा न रखना
(iii) एक आँख से देखना ।
(iv) एक लाठी से सबको हाँकना ।
(v) खरी-खोटी सुनाना ।
(vi) खरी खरी सुनाना ।
(vii) अपनी करनी पार उतरनी।
(viii) यह मुँह और मसूर की दाल ।
(ix) तन पर नहीं लत्ता, पान खाएँ अलबत्ता ।
(x) नेकी नौ कोस, बदी सौ कोस।